रण का नाद उठा जब
दक्षिण में, धनुष्य की कोटि से...
"जाओ वीर, हर लाओ
एक लिंग, कैलाश की ही चोंटी से।"
ऐसा कहते ही, श्रीराम के परम भक्त,
पवन-सूत, बजरंग हुए नतमस्तक।
"सत्य वचन, प्रभु" कहा "बिन लिंग,
रण विजय यज्ञ, अब रुका रहेगा कब तक।"
यूँ कह बजरंग ने आशीष लिया
और हुए आँख से ओझल,
यहाँ तो है बस कोसों-कोसों
नील नभ, बालू रेत औ' जल,
"यत्र - न ब्राहमण ना अर्धांग"
श्रीराम के चिंतन में यही था पल-पल।
बिन ऋषि, बिन लिंग,
वे यज्ञ विजय का कैसे पूरा कर पायेंगे?
और, जाने कौन घड़ी में,
बजरंग कैलाशपति को लायेंगे।
श्याम वर्ण की चिंता जब,
चहूँ दिशा में व्याप्त हूई....
और दशानन रावण को
श्रीराम की ग्लानी ज्ञात हूई....
तब लंकापति, असुरराज ने
ब्राह्मण धर्म निभाया है...
स्वकरों से बने बालू लिंग से
श्रीराम का विजय यज्ञ करवाया है।
औ' यही नहीं, वे लाये साथ
सिया को, पुष्पक विमान में ....
यह देख प्रभू श्रीराम झुके,
ब्राह्मण के सनमान में।
लिंग बना, जो डिगा नही,
इतिहास ने ये कहीं लिखा नही
कि रणभूमि में असुरराज ने वीरगति जो पाई है,
वह इस कारण कि, कर्म, धर्म और
शेष सभी की चर्या पूरी निभाई है।
9 comments:
AS I SAID THIS LEAVES A DISTINCT
TASTE OF RAMDHARI SINGH DINKAR.
KEEP WRITING.
SUBODH
OMIGOD....!!!!yeh aapney likhi hain??
@Pa -
That's too big a compliment!! and of course a touch of what i've read is always there!
@ Arti
Haan ji yeh maine likhi hai....
Humein aapki Fan List mein add kar leejeyein..:)..!!
This is awesome dude !!
dyoooooooood .... zamana ho gaya iss quality ka hindi poetry padhe ... mann khush ho gaya padhke .... absolutely brilliant ... and I agree, definitely leaves a taste of of Dinkar
@Dawg
Dhanyawaad!
I am not sure who u r but it sure is a sheer pleasure to know someone liked it! Do reveal your identity!
Thanks again!
bhaiya,
excellent!!!!
keep it up.
ruchi bhabhi
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