September 1, 2014

बंद आँखों के पीछे...



New Muse... New News!
There are a few people you come across in life whose dreamscape (though unknown) inspires words. That dreamscape I'd rather not break... I'd rather not shatter... I'd probably just want to be a part of! Here goes to that dreamscape!

सपनों में जो सच थे मेरे...
सपनों की एक दुनिया थी...
सच की दुनिया देख लगा...
 मैं सपनों में ही बेहतर थी!

सपने दिखते धुंधले से
पर रिश्ते उनसे अपने थे...
अपनों से धुंधलाते रिश्ते
सपनों में कुछ बेहतर थे!

सपनों में चेहरे थे असली...
जाने पहचाने मुस्काते...
झूटा हस्ते असली चेहरे भी
सपनों में ही बेहतर थे!

सपनों में गिरने से जागी,
भ्रम भी आँखों से ओझल था...
चोंटिल जगी नम आँखें बतलाती,
गिरना भी...
सपनों में ही बेहतर था!

सपने घम के भी आये और
छलका मूंद आँखों से पानी...
खुले नयन बरसाते खारे आंसू ...
मीठे अश्रु तो...
सपनों के ही बेहतर थे

April 8, 2013

दुकान...

लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...

 गर लग जाए ठेस या भर आये मन,
सीने का भार जो करना हो कम
भाड़े पे देता हूँ बाहें बिन दाम.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...  

फटने लगे गर आक्रोश की ज्वाला,
दिल खोलके चीखना चिल्लाना हो
ले जाओ मुफ्त में मेरे दो कान.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...  

उमड़ जाये गर आँखों के सागर  
टीस, चुभन या बस उदासी से 
मिल जायेंगे यहाँ कन्धों के रुमाल.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...  


भड़ास गर घर कर गयी हो दिल में  
आके कहो अपनी कहानी, 
बेबसी के निवारण के लिए 
आओ करो अपनी मनमानी. 

बस एक चीज़ नहीं देता मैं मुफ्त,
ये आँखें मेरी...
ये बातें करती हैं बिन शब्द बिन बोल,
ये बस उनके लिए हैं 
जिन्हें ज्ञात हो इनका मोल...

February 11, 2013

"Ch-egg Mate"

Need I explain that I was in a whimsical mood and I've taken to doodling a lot these days!
Yes it is in line with my brand of humour, so you can rip your hair out!!

October 5, 2012

गुनगुनाते रहो



दिन आये और दिन जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

रोज़मर्रा
भी जब आसन नहीं
उसपर
तुम, आये और जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

सिसकियाँ
सारी अनसुनी बीती
आंसूं
भी आये और जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

दबी
सी हँसी, छोटी अटखेलियाँ
खुशियाँ
चंद, आई और जाती रही...
मैं गुनगुनाती रही
 
ग़म आये और जाते रहे,
खुशियाँ आई और जाती रही,
संगीत ग़म का, संगीत ख़ुशी का
पल पल, न आया न गया,
मैं गुनगुनाती रही.