लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
गर लग जाए ठेस या भर आये मन,
सीने का भार जो करना हो कम
भाड़े पे देता हूँ बाहें बिन दाम.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
फटने लगे गर आक्रोश की ज्वाला,
दिल खोलके चीखना चिल्लाना हो
ले जाओ मुफ्त में मेरे दो कान.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
उमड़ जाये गर आँखों के सागर
टीस, चुभन या बस उदासी से
मिल जायेंगे यहाँ कन्धों के रुमाल.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
भड़ास गर घर कर गयी हो दिल में
आके कहो अपनी कहानी,
बेबसी के निवारण के लिए
आओ करो अपनी मनमानी.
बस एक चीज़ नहीं देता मैं मुफ्त,
ये आँखें मेरी...
ये बातें करती हैं बिन शब्द बिन बोल,
ये बस उनके लिए हैं
जिन्हें ज्ञात हो इनका मोल...
गर लग जाए ठेस या भर आये मन,
सीने का भार जो करना हो कम
भाड़े पे देता हूँ बाहें बिन दाम.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
फटने लगे गर आक्रोश की ज्वाला,
दिल खोलके चीखना चिल्लाना हो
ले जाओ मुफ्त में मेरे दो कान.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
उमड़ जाये गर आँखों के सागर
टीस, चुभन या बस उदासी से
मिल जायेंगे यहाँ कन्धों के रुमाल.
लो खोल दी मैंने आज दिलासों की दुकान...
भड़ास गर घर कर गयी हो दिल में
आके कहो अपनी कहानी,
बेबसी के निवारण के लिए
आओ करो अपनी मनमानी.
बस एक चीज़ नहीं देता मैं मुफ्त,
ये आँखें मेरी...
ये बातें करती हैं बिन शब्द बिन बोल,
ये बस उनके लिए हैं
जिन्हें ज्ञात हो इनका मोल...