एक ख्याल कुछ अपरिपक्व सा...
एक भोर का सपना धुंधला सा...
उस अज़ान या भजन के संगीत में
वो साज़ कुछ पहचाना सा, कुछ अपना सा...
वो गलियाँ जानी पहचानी पर विषम
और उनमे छूटा हुआ एक किस्सा कुछ भूला सा...
मटमैले से कागज़ पर अधूरा एक चित्र...
और रेखाओं से झांकता वो अधूरा एक पत्र...
और उस पन्ने से उठती नमकीन सी गंध...
पर यादें उस पत्र की कुछ अस्पष्ट सी,
अस्पष्ट यादों को मिटाने का एक प्रयास, अधूरा सा
वो चित्र, और उसकी भी यादें धब्बेदार
कारण कुछ नमकीन कुछ नम सा...
शायद तुम्हारे बिना वो कुछ और अधूरी होती...
जानता हूँ अधूरी, जुदा दस्तानों को मिलाकर एक पूरी कहानी नहीं बनती...
पर अगर हर दास्ताँ में मेरा एक अंश है...
तो ये अधूरी कहानियां, शायद मुझे पूरा कर दें...
पंक्ति के अंत पर पड़े उन् तीन बिन्दुओं का मतलब समझ लो...
शायद अर्थ कुछ स्पष्ट हो जाए !
9 comments:
Amazing..!
Beautifully written!!
The subtle mystery and dreaminess evoked here is really nice...
These incomplete lines make complete sense to me :)
@Avani - Thak u thank u!! :)
@Vidu - its like i was almost anticipating a comment from u soon!! again something i look forward to!! :) Thanks!
I will be honest bro, I had to read it for at-least four times to get it.
I love the way it flows ... from adhoore saaz, to adhoore letters to adhoori kahaani. Really great one.
One more reason to follow your blog religiously :)
It's really beautiful!
@Devesh - You've always loaded me with heavy compliments! Thanks a ton!
Though am not sure - "it requires so many readings" - is that a compliment or not??!! O_O
@Radhika - i am honestly flattered by each of your comments. I hope i never let down the quality and lose the reader in you!! :) Thanks!
@Prachee - is that a sarcastic smile?? or a knowing smile?? or just a smile of happiness that i wrote something (nice)!! :D
Chahte hain ki yeh adhoori daastayien tumhe likhne ko uksati rahen
Poori kahani ka hum kya karenge..
(yaar kahani poori ho gayi toh tum likhna band kar doge)
@Anonymous - Chaliye aap kehte hain to kahani poori nahi karenge... par apna parichay to dijiye!!
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