डरा हुआ, मैं थका हुआ,
गहन तिमिर से ढका हुआ...
क्रोधी हूँ, अभिशापित हूँ,
पर वादों से मैं थमा हुआ...
चाहूं और फिर मुड जाऊं,
मैं आत्मघात से डरा हुआ...
करता भी तो क्या करता,
मैं अपने-आप से कटा हुआ...
डरा हुआ, मैं थका हुआ,
गहन तिमिर से ढका हुआ...
जितनी चंचल मन की चाहत,
उतनी राहों से मैं जुडा हुआ...
राहें तो हैं कई मगर, अपनी
मंजिल से मैं डिगा हुआ...
राहों पर जमघट है, फिर भी
एकाकी मैं भुला हुआ...
डरा हुआ, मैं थका हुआ,
गहन तिमिर से ढका हुआ...
कागज़ कलम दवात के संग,
मैं अपने-आप मै रामा हुआ...
शब्दों के इस हेर फेर में
रचनाकार मैं मंजा हुआ...
श्रोता, दर्शक, वांचक सबके समुख,
नतमस्तक मैं खड़ा हुआ...