October 5, 2012

गुनगुनाते रहो



दिन आये और दिन जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

रोज़मर्रा
भी जब आसन नहीं
उसपर
तुम, आये और जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

सिसकियाँ
सारी अनसुनी बीती
आंसूं
भी आये और जाते रहे...
मैं
गुनगुनाती रही

दबी
सी हँसी, छोटी अटखेलियाँ
खुशियाँ
चंद, आई और जाती रही...
मैं गुनगुनाती रही
 
ग़म आये और जाते रहे,
खुशियाँ आई और जाती रही,
संगीत ग़म का, संगीत ख़ुशी का
पल पल, न आया न गया,
मैं गुनगुनाती रही.