एक ख्याल कुछ अपरिपक्व सा...
एक भोर का सपना धुंधला सा...
उस अज़ान या भजन के संगीत में
वो साज़ कुछ पहचाना सा, कुछ अपना सा...
वो गलियाँ जानी पहचानी पर विषम
और उनमे छूटा हुआ एक किस्सा कुछ भूला सा...
मटमैले से कागज़ पर अधूरा एक चित्र...
और रेखाओं से झांकता वो अधूरा एक पत्र...
और उस पन्ने से उठती नमकीन सी गंध...
पर यादें उस पत्र की कुछ अस्पष्ट सी,
अस्पष्ट यादों को मिटाने का एक प्रयास, अधूरा सा
वो चित्र, और उसकी भी यादें धब्बेदार
कारण कुछ नमकीन कुछ नम सा...
शायद तुम्हारे बिना वो कुछ और अधूरी होती...
जानता हूँ अधूरी, जुदा दस्तानों को मिलाकर एक पूरी कहानी नहीं बनती...
पर अगर हर दास्ताँ में मेरा एक अंश है...
तो ये अधूरी कहानियां, शायद मुझे पूरा कर दें...
पंक्ति के अंत पर पड़े उन् तीन बिन्दुओं का मतलब समझ लो...
शायद अर्थ कुछ स्पष्ट हो जाए !